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के जाप करने वाले का डाकिनी वेताल राक्षस और महामारी कुछ नहीं बिगाड़ सकते और सारे पाप अपने आप नष्ट हो जाते हैं ||२|| पंच परमेष्ठि नमस्कार मंत्र के चिंतन मात्र से जल - आग - दुश्मन - प्लेगचौर - राजा यादि के किये घोर उपसर्ग मिट जाते हैं ||३|| जो कोई भव्यात्मा कर्म मल मुक्त हो मोक्ष में गये हैं जाते हैं और जायेंगे वे सभी नवकार मंत्र के प्रभाव से ही जाते हैं ।
यतः हे महानुभाव कुमार ! नवकार मंत्र का स्मरण सदा करते रहना चाहिये जिससे जीवन मंगलमय बन जाता है ।
इस प्रकार गुरुमहाराज के उपदेश को सुन कर प्रतिबोध पाये हुए उन श्री चन्द्रकुमार ने गुणचन्द्रने और सारथि ने गुरुदेव से आत्मदर्शन रूप सम्यक्त्व स्वीकार किया, और श्रावक धर्म के अधिकारी हो गये। अमृत रसास्वा दन से भी अधिक आनन्दित हुए कुमार ने हाथ जोड कर कहना शरु किया - गुरुदेव ! आप जंगम तीर्थ रूप हैं । आपके दर्शन पाकर आज मैं कृतार्थ हो गया हूँ । गुरु की दया के विना बुद्धिमान पुरुष भी धर्म तत्व को जानने में समर्थ नहीं हुआ करता है । इस तरह सिद्धि - कलायें - सब प्रकार की विद्यायें और आत्म हितकारी धर्मतत्व ये सब गुरु कृपा से ही प्राप्त होते हैं । संसार के सुख और संबंधी तो मिला