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अनन्त संसार सागर को पार कर जाता है। अनादिकाल से आत्मा मोह से बेहोश रहता पाया है । उसे होश में लाकर व्रत साधना से जीवन को ऊंचा उठाना चाहिये।
सर्वथा हिंसा-झूठ-चोरी-विषयसंग औ त्याग से पंच महाव्रतों को धारण करने वाला व्यक्ति साधु होता है । जो साधु-जीवन नहीं बीता सकते, उन्हें गृहस्थ धर्म-मर्यादित जीवन रूप सम्यक्त्व मूल बारह व्रतों को धारण करने चाहिये। ___हे कुमार ! तुम्हारे शरीर में छत्राकार तीन रेखायें हैं । इससे पता चलता है कि तुम छत्रधारी पिता के पुत्र
और छत्रधारी नाना के दोहिते कोई छत्रधारी राजा होने योग्य लक्षणों वाले दीखते हो । इस हालत में अगर अधिक साधना तुमसे न होसके तो भी समय पर सामायिक व्रत की साधना और अरिहंत सिद्ध आचार्य उपाध्याय
और साधु रूप पंच परमेष्ठी नमस्कार मन्त्र का नित्य स्मरण तुम्हें अवश्य करना चाहिये । शास्त्रों में कहा है
सामाइयं कुएंतो, सम भावं सावो घडिय दुगं। आउं सुरेसु बंधइ, कम्माण य निज्जरं कुणइ ॥१॥ समो य सव्व भूण्सु, तसेसु थावरेसु य । ..
तम्हा समाइयं कुज्जा, इइ केवलि भासियं ।। २॥ ..... दिवसे दिवसे लक्खं, देइ सुवरणस्स खंडियं एमो। . इयरो पुण समाइयं, करेइ न पहुप्पए तस्स ॥३॥ ..