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(६२ ) कुमार को देख कर वह बापिस भगवान श्री आदिदेव के चरणों में विनय-वंदन कर जोर से प्रार्थना करने लगी। .." हे भगवन् ? मैं आत्म-भाव से श्री वीतराग परमात्मा को देवरूप निर्ग्रन्थ महात्मा को गुरु रूप, और केवली भग वान प्ररूपित विधि विधान को धर्मरूप मानती हूँ। यही सम्यक्त्व जन्म-जन्मान्तरों में भी आपकी दया से प्राप्त होता रहे और यह सुन्दर सुकुमार-कुमार ही मेरा स्वामी होवे । ऐसी प्रार्थना करके उसने अनशन व्रत ग्रहण कर लिया, और भगवान श्री आदीश्वर के चरणों का ध्यान लगा कर वहीं बैठ गई।
यह सब देख सुन श्रीचन्द्र कुमार ने उस सारिका से कहा-मैना ! तुम्हारा ऐसा करना उचित नहीं है। श्री जिनेश्वर देवने इस प्रकार से नियाणा-भावीफल की मांगणी-करने का निषेध किया है। ऐसा करने से जीव सद्गति से वंचित हो जाता है। ___ कुमार के ऐसे वचन को सुनकर सारिका कहने लगी हे कुमार ! मुझे नियाणा-करने की कोई आवश्यकता नहीं है पर कुत्सित-स्वामी के मिलने पर सुचारु धर्म का आराधन नहीं होता । इस धार्मिक सहूलियत के विचार से ही मेरी यह प्रार्थना है-और मैंने आमरण अनशन कर लिया है।