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वीर पुरुष की हुई प्रतिज्ञा को और प्रारम्भ किये हुए कार्यों को पूरा करके ही छोड़ते हैं । आनेवाली विघ्नबाधाओं से उनका मन मूर्च्छित नहीं हुआ करता है ।
महाराजा प्रतापसिंह ने अपने शत्रु रत्नपुराधिपति के साथ आठ वर्ष के घोर संग्राम के पश्चात् उसे हरा दिया । रत्नपुर पर अपना अधिकार जमा लिया । वहां अपनी विजय वैजयन्ती फहरा कर अपनी शासन-सत्ता स्थापित कर दी। बाद में अपनी विजय - वाहिनी - विशाल फौज के साथ निरन्तर प्रयाण करते हुए अपनी राजधानी कुशस्थलपुर में आ पहुँचे ।
राज - मन्त्रियों ने महाराज की पधरावणी में नगर को खूब सजाया । सामंत -सेनापति - सभासद - सेठ साहुकार -