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पुण्य से प्रेरित उसकी लक्ष्मी दिन-दुणी रात चौगुणी बढती जाती थी । दुर्जनों को उसकी पुण्य-लीला खटकती थी। कई बार सेठ लक्ष्मीदत्त के कान भरे जाते थे । पर सेठ सुनी अनसुनी करके कुमार के प्रति अपने स्नेह भाव को बनाये रखता था । - एक दिन अपने अभिन्न मित्र गुणचंद्र को साथ लेकर श्रीचन्द्र कुमार हवाखोरी के लिये उपवन में गये । वहां उनने तालाब के किनारे डेरे डाले हुए घोड़ों के सौदागरोंको देखा। उनके पास शोभा और चंचलता में सूर्यरथके घोडों को भी मात करने वाले अद्भुत घोडों को देखा। अपने अभिन्न मित्र को प्रेरित करते हुए कुमार ने कहा प्रिय मित्र ! इन व्यापारियों से इन घोडों का मूल्य तो पूछो । गुणचंद्रने मित्र के कथनानुसार घोडों का मूल्य पूछा तब एक वृद्ध व्यापारी ने कहा आज तक हमने बहुत घोड़े बेचे हैं, लेकिन ये सोलह घोडे बहुत ही उत्तम जातीके और बेशकीमती हैं।
इस बात को सुनकर कुमार घूम घूम कर एक एक घोड़े को देखने लगा। मित्र के पूछने पर उसने उन घोडों को जाती और गुणों का वर्णन बड़े पाण्डित्य-पूर्ण-ढंग से किया। वह कहने लगा, मित्र ! मुख चरणों में सफेद रंगवाला यह अष्ट-मंगल-जाती का अश्व है। लालवर्ण का