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इधर कुमार घोडों को लेकर आता है, और सेठ से निवेदन करता है, कि पिताजी ! दो लाख में ये दो घोडे लाया हैं। 'बहुत अच्छा किया' इस प्रकार कहते हुए सेठने उसे स्नेहामृत से सिंचन किया। बाद में पिता की आज्ञा लेकर गारुडी मणियों से जडा हुआ सुवेग नाम का एक सुन्दर रथ तैयार करवाया । उसके लिये कुल क्रमागत रथ हांकने की विद्या में निपुण धनंजय नाम के सारथी को नियुक्त किया। ____एक दिन सुमुहूर्त में उन दोनों घोड़ों को रथ में जोत कर उनकी चाल ढाल और स्वभाव की परीक्षा के लिये कुमार अपने मित्र के साथ किसी एक दिशा को लक्ष्य करके बड़े वेग से चला । घोड़े इतने वेग से दौड़े कि रथ में बैठे तीनों को पेड़, पहाड़, नदी, नाले सब दिखाई दिये। प्रत्येक वस्तु आंखों के सामने आने के साथ ही उसी क्षण में प्रांखों से ओझल हो जाती थी। इस प्रकार आधे प्रहर में कोई पनरह योजन-साठ कोस तक चले गये । वहां विश्राम कर वापस उसी वेग से लौट आये।
इस प्रकार श्रीचन्द्रकुमार हमेशा अपने मित्र के साथ रथ में बैठ अपनी इच्छानुसार नये २ पहाडों वनों और प्रदेशों आदि को देखता हुमा अपना. मनोरंजन करने