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आदि को सारी सामग्री जुटाली है। देश देशान्तरों के राजाओं के पास निमंत्रण-पत्र भेजे गये हैं। अतः उस स्वयंवर में सम्मिलित होने वाले सभी राजा लोग अपने राज्यों से चल कर निश्चित तिथि पर वहां पहुँच जायेंगे। आजसे सत्रह दिन बाद राधावेध का मुहूचे है । विलकपुर यहां से लगभग अस्सी योजन दूर है । ये जयकुमार आदि वहीं पहूँचने को जा रहे हैं।
इस प्रकार दोनों मित्रों को स्वयंवर सम्बन्धी बातचीत करते हुए अचानक आये हुए सेठ लक्ष्मीदत्त ने सुना। गुणचन्द्र को अलग बुलाकर कहा कि पुत्र ! तिलकपुर में राधावेध आदि होने वाले हैं। अगर श्रीचन्द्र जाना चाहे तो पूछो।
मित्रने पिता की इच्छा पुत्र के सामने प्रकट कर दी लेकिन कुमार ने उसका कोई उत्तर नहीं दिया। सोलहवें दिन की संध्या को कुमार ने सारथि को रथ जोतने को
आज्ञा दी । अपने मित्र को साथ लेकर पिता को विना पूछे ही वह वायुवेग से तिलकपुर की ओर चला गया। मार्ग में आने वाले पहाड़ जंगल नदी नाले आदि सब को पार करता हुआ सुबह होते २ तिलकपुर के उद्यान में जा पहूँचा। सारथि को रथ सौंप कर, अपने मित्र को साथ ले वह