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( १.२२ )
यह सुनकर राजा तिलकसेन ने अपने अपने सिपाहियों को कुमार को खोज लाने की आज्ञा दी । राजाकी आज्ञा को पाकर कई घोड़ों पर और कई रथों पर सवार होकर उसके पीछे दौड़े परन्तु वह उनके हाथ नहीं आया । वहां उपस्थित राजा लोग उसके दुष्कर कार्य की और त्याग की मुक्त कण्ठ से प्रशंसा करने लगे ।
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: भेजे हुए सिपाही खाली हाथ लौट आये । राजा बड़ा दुःखी हुआ। वह राजकुमारी तिलक मंजरी बेहोश होगई । होश में थाने पर वह इस प्रकार विलाप करने ली ।
हा प्राणनाथ ! आप मुझ अभागिनी को विना वरण किये ही क्यों चले गये । अगर विवाह की इच्छा न थी तो राधावेध जैसे दुष्कर कार्य को करने का साहस ही क्यों किया ? | स्वामिन ! इस प्रकार रोती बिलखती मुझ अविवाहित अवस्था में ही छोड़ कर चले जाना आप जैसे प्रणपूरकों का धर्म और कर्त्तव्य नहीं है । देव ! आपने मुझे किस अपराध पर यह दण्ड दिया है ? | वायु faar से भी अधिक तेज उस रथ से मेरी दृष्टि से श्रीमल होंगये हो पर मेरे हृदय से आप कभी दूर नहीं हो सकते हे स्वामिन ! जलहीन मछली के समान तड