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( ११६ ) पिता वंश जाति देश और पुरादि कों का परिचय कराया। अपनी ओजस्विनी वाणी से उन सब को राधावेध के कार्य में प्रोत्साहित किया । भट्टवाणी से प्रोत्साहित राजा लोग क्रमशः राधावेध के खम्भे के पास आते और उस विधि को न जानने के कारण हंसी के पात्र बन कर चले जाते ।
__ जय आदि राजकुमार भी अपनी अपनी बारी से वहां आये परन्तु लक्ष्य भ्रष्ट रहने के कारण लजित और निराश होकर मुह नीचा किये वहां से हट गये । नरवर्मा राजा ने एक चक्र को तो वींध दिया, पर बाण टूट जाने के कारण वह भी शर्मीन्दा होगया । शेष बचे कामपाल वामांग शुभगांग का पुत्र श्रीमल्ल वरचन्द्र और दीपचंद्र के पुत्र आदि जो प्रवीण और विचारवान थे वे लोग तो पहेले से ही इस कार्य की गुरुता को सोच कर अपने स्थानों पर ही बैठे रहे । ___ जब यह दुष्कर कार्य किसी से पूरा न हुआ तो राजा तिलक सेन उसकी कन्या उसका परिवार और अध्यापक
आदि सभी बड़े चिंतित हुए। तब भट्ट ने फिर जोशीली भाषा में कहना शुरु किया-"उपस्थित लोगों में क्या कोई वोर नहीं है, जो प्रण को पूरा करके सबको चिंता मुक्त