________________
१६
वसंत का समय था । आम के वृक्षों पर मंजरियाँ फूट रही थी। उनकी महक चारों ओर फैल रही थी । लाल आँखों वाली काली कोयलें कषाय कण्ठों से पंचमस्वर में कुहू कुहू कर रही थी । सारे वन और उपवन ऋतुराज का स्वागत करने के लिये मस्ती में झूमते हुए हरे भरे इठलाते खडे थे । मकरंद के लोभी भौंरे पुष्पों की प्याली में रखे हुए रस को बार बार पीकर उन पर मंडरा रहे थे ।
श्रीचन्द्र कुमार अपने मित्र के साथ झूला झूल रहा था । मलयाचलकी शीतल मंद और सुगन्धित पवन उनके ललाट से पसीने की बूंदों को पोंछकर उनके वस्त्रों और बालों को हिला रही थी । दोनों दोस्त बडी प्रसन्नतासे सामने के बड़े झरोखे की राह से एक टक वसंत की