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लोग महाराज के स्वागत में उनके सामने गये । नगरसेठ लक्ष्मीदत्त अपने पुत्र के साथ एक अपूर्व भेंट लेकर उनके सत्कारार्थ उपस्थित हुए। महाराज ने भी क्रमशः उपाधि और योग्यतानुसार सारे सामन्तों- मन्त्रियों-नागरिकों के साथ हाथ मिला २ कर अभिवादन किया ।
नगर सेठ लक्ष्मीदत्त के सर्वांग सुन्दर कुमार श्रीचंद्रके अनुपम आकर्षण से आकृष्ट हुए महाराज ने पूछा कि यह अद्भुत बालक कौन है ? तब सेठ ने कहा महाराज ! यह आपके सेवक का उत्तराधिकारी है । कुमार ने बड़ी वीरोचित वृत्ति का प्रदर्शन करते हुए, महाराज को विनीत प्रणाम किया । अपने पुत्र चन्द्र को देखकर समुद्र जैसे उमड़ता है ठीक उसी प्रकार महाराज प्रतापसिंह भी श्री चन्द्रकुमार को देखकर अन्तररंग स्नेह से आन्दोलित हो उठे । उन्होंने उसे ताजिम के साथ कणकोट्टपुर की जागिरी बक्षिस कर दी। दूसरों को भी यथायोग्य पुरस्कार दान किया | महाराजा अपने महल में चले गये । जरूरी कामों को निपटाते हुए सुख से आराम करने लगे ।
इधर श्रीचन्द्रकुमार का विद्याभ्यास सर्वतो -भावेन पूर्ण होगया । गुणंवर गुरु ने उसे प्रेमपूर्वक शस्त्र - धारा को बांधनेवाली दिव्य जडी प्रदान की और वे स्वदेश लौट