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. ( ६८ ) नगर बसाया है। वहां मेरे कई मकानात हैं। आप वहां पधार और विद्याभ्यास के योग्य स्थान निर्धारित करें।
प्राचार्य ने सेठ के साथ लक्ष्मीपुर में जाकर अपनी इच्छानुसार सुविधाजनक एक सुन्दर स्वच्छ और विशाल भवन विद्याभ्यास के लिये चुन लिया । स्थान का निश्चय हो जाने पर सेठ ने शुभ मुहूर्व में चन्द्रमा आदि का प्रशस्त विचार करके विद्याभ्यास के समस्त उपकरणोंसे उपयुक्त लेखशाला का निर्माण करा दिया ।
उस विद्यालय में श्री गुणधराचार्य की अध्यक्षता में शुद्ध-वस्त्रा भूषणों से सज-धजकर गुणचंद्रादि मित्र छात्रोंके साथ श्रीचन्द्रकुमार ने बड़े भारी विनय भाव से-ओंकार के उच्चारण के साथ शिक्षा प्रारम्भ की । सेठ ने भी इस प्रसन्नता के उपलक्ष्य में उपस्थित छात्रों को बहुमूल्य वस्तुएँ प्रदान की।
__ श्रीचन्द्रकुमार गुणधर उपाध्याय की एवं विद्या की उपासना इस प्रकार करने लगा कि उसे अल्पकाल में बहुतेरी कलायें प्राप्त हो गई। नम्रता के कारण सारे गुण अपने आप उसमें आकर रहने लगे। विद्यालय में बहुत से विद्यार्थियों के रहते हुए भी लोग उसी की ओर देखा
ते थे । सच हे, आकाश में चन्द्रमा के रहते बिचारे