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उपकार के सामने धन क्या चीज है ? मैं कोई तुच्छधन पर उच्च विद्या को न्योच्छावर करने वाला श्रोछा आदमी नहीं हूँ ।
पढ़ते सहस्र शिष्य हैं पर फीस ली जाती नहीं, वह उच्चशिक्षा तुच्छ धन पर बेच दी जाती नहीं । दे वस्त्र भोजन भी स्वयं कुलपति पढाते हैं उन्हें, बस भक्ति से सन्तुष्ट हो दिन २ बढाते हैं उन्हें ||
विद्या के बदले में विद्या देने वाले और धन से विद्यादेने वाले दोनों लोभी कहलाते हैं । विनय से सन्तुष्ट हो मुफ्त में विद्या प्रदान करने वाले गुरु होते हैं और वेही सच्चे पुण्य के अधिकारी होते हैं ।
उपाध्याय की उदारता और निस्पृहता से परिपूर्णवाणी को सुनकर सेठ बहुत प्रसन्न हुआ । बहुमूल्य वस्त्राभरणों से स्वागत करते हुए उपाध्याय से निवेदन किया कि हे मान्यवर ! हम आपकी क्या सेवा करें ? हम और यह कुमार सदा आपके आभारी रहेंगे । आप इसे पढ़ानाप्रारम्भ कर और इसे कलावान बनावें ।
श्री गुगंधर उपाध्याय ने सेठ लक्ष्मीदत्त से कहा विद्याभ्यास एकान्त में निरुपद्रव ठिकाने पर ही ठीक होत | अतः ऐसा स्थान खोजना चाहिये । तब सेठ ने कहा भूदेव ! राजा की आज्ञा से मैने लक्ष्मीपुर नाम का एक