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बडे भारी इस ठाठ का वृत्तान्त अगर छुपाने योग्य न हो तो मैं सुनना चाहता हूँ।
कुमार की ओर ललचाई हुई निगाह से देखती हुई वह स्त्री कहती है कुमार ! मैं महारानी सूर्यवती की मुख्य दासी हूँ। मेरा नाम सैन्द्री है। यह सारिका मेरी स्वामिनी सूर्यवती की परम-प्रेम-पात्र है। इसका जन्म कर्कोटक द्वीप में हुआ है। किसी जहाजी व्यापारी ने इसे महा राजा प्रतापसिंह को यहां भेट की थी । यह अपने ज्ञानी गुरु के प्रसंग से प्राप्त कला के द्वारा महाराज का मनोरंजन किया करती है।
कुमार ! सुना होगा ? महारानी को पुत्र वियोग का असह्य दुःख हुआ था। महाराज दुश्मन को जीतने गये थे। पत्र द्वारा दुःखद समाचार को पाकर महाराजा भी बड़े दुःखित हुए थे। उस समय महारानी के मन को शांत कर ने के लिये इस सारिका को महाराजा ने यहां भेजी थी। तब से यह महारानीजी को समय २ पर उपदेश देकर और श्री वीतराग की वाणी को सुना कर धर्म ध्यान में प्रेरित करती है, और दुःख का समय काटने में साथ देती है।