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सारिका की इस भावना से परिचित हो सैन्द्रीने महारानी सूर्यवती से सारिका के आमरण अनशन लेने की बात कही । तब वह घबराई हुई सी वहां आई, और उसने सारिका को ऐसा आमरण अनशन न लेने के लिये बहुतेरा समझाया । परन्तु उसने रानी को उत्तर दिया-"स्वामिनि ! मेरे लिये ज्ञानी गुरु की ऐसीही भविष्यवाणी है। उसी प्रेरणासे आज जो मैने भगवान श्री ऋषभदेव स्वामी के सामने जो प्रतिज्ञा की है, वह कभी मिथ्या नहीं होगी। अब आप कृपा करके इस कार्य में सहायक बनें । बस, इतना कहकर मैना मौन करके स्थिर हो गई।
उसकी ऐसी धारणा को देख रानी गदगद स्वर से कहने लगी। प्रिय सखि ! तेरे विना मेरे ये दुःख के दिन कैसे कटेंगे ? मैं तेरे इस शुभ संकल्प को तुडाना नहीं चाहती । तेरा कल्याण हो । ऐसा कहकर रानी ने, सखियों ने और नगर निवासियों ने मिलकर अनेक प्रकार से उस अनशन को भारी महिमा की । तीन दिन के अनशन को करके सारिका ने अपने इस नश्वर-शरीर को त्याग दिया । रानी की आज्ञा से चंदन की चिता में उसका अंतिम संस्कार बडे समारोह से हुआ रानी उसकी मृत्यु से शोक-संतप्त हो उसके महान गुणोंको रह रह कर याद करने लगी।