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देवता के दिये हुए स्वप्न को याद करते हुए फूलों के टोकरे में छिपा कर सेठ उसे अपने घर ले आया । एकान्त में उसकी प्राप्ति के समाचार सुनाते हुए सेठ ने सेठानी की गोद में बालक को सुला दिया। - पुत्र जन्म के समय का मंगल थाल स्त्रियों ने बजाया बधाइयाँ बांटी जाने लगी । सेठने सेठानी के गूढ गर्भ था-की बात चारों ओर फैला दी । लोग भी सुन २ कर बडे प्रसन्न हुए । बाजे बजने लगे। स्थान २ पर मंगल गीत गाये जाने लगे । भाट चारण याचकों की प्रशंसात्मक घनि से सारी दिशायें गूंज उठी । हजारों सोने चाँदी के थाल-सजा कर फल-फूल मेवा-मिठाई आदि • इधर उधर भेजे जाने लगे। कुटुंबियों, बन्धुओं, साधर्मियों
का बडी ही श्रद्धा भक्ति और प्रेम से आदर करते हुए सेठने पुत्र जन्मोत्सव बडे ठाठ से मनाया। ___ अंगुठी में अंकित मन पसंद नाम को देखकर सेठ ने सब लोगों के सामने-"श्रीचन्द्रकुमार" ऐसा उसका नाम संस्कार किया । इस प्रकार एक ओर राजकुमार संकटों को पार कर पुण्य के योग से सेठ के महल में नन्दन वन में कल्पवृक्ष के जैसे प्रतिदिन बढने लगा। दूसरी ओर धन
धान्य रत्न-सुवर्ण आदि लक्ष्मी से दिन दूना और रात चौगुना .. सेठ बढने लगा। मणि-रत्नों के दिव्य-सुन्दर-खिलोनों से