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( ८६ ) अभाव उन्हें कांटे की तरह रात दिन खटकता था । पुत्र प्राप्ति के लिये उन्होने कोई भी शक्य-प्रयत्न बाकी नहीं छोडा था । तदर्थ कोई न कोई देवी देवता को वे मनाते ही रहते थे।
. जिस रात महारानी सूर्यवती को स्वप्न में देवी ने दर्शन दिये थे उसी रात में उसी समय में सेठ लक्ष्मीदत्त को भी स्वप्नमें देवी ने दर्शन दिये, और कहा-"सेठ ! सुनो, प्रातः काल तुम्हारे घरमें सत्पुत्र रूप कल्प-वृक्ष की पधरावणी होगी उसके लिये तुम अपने यहां भारी महोत्सव के मंडाण मंडात्रो इस दिव्य संदेश को सुनकर सेठ जग जाता है। सेठानी से कहता है आज मैने पुत्र रूप कल्प वृक्ष की प्राप्ति का संकेत स्वप्न में पाया है। सेठानी के भी प्रसन्नता का पार न रहा। - प्रातःकाल सेठ ने अपने कुटुम्बियों को एकत्रित कर. खुशी का भोजन करवाया । आमोद-प्रमोद नाच-गान करवाये । मंडप सजाने के लिये राजाज्ञा से राजवाडी से फूल लाने के लिये वह महाराजा के उद्यान में पहूँचा । सेवकों से मन पसंद फूल इकट्ठा करवाते हुए सेठ ने फूलों के ढेर में रत्नकंबल में लपेटे हुए नामांकितमुद्रा से मुद्रित तुरत के जन्मे तेजस्वी बालक को बाल-क्रीडा करते हुए देखा । सेठ ने चुप चाप उसे उठालिया रात्री में गोत्र