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' ८४ ) स्वजनों के आश्वासन से विवेकवती रानी सूर्यवती ने आखिरकार दिल को मजबूत बनाया। अपने इष्ट के ध्यान में लीन होगई । उसी समय कुछ देर के लिये आंखें लग गई। उस अर्धनिद्रित अवस्था में उनने स्वप्न में सफेद वस्त्र धारण की हुई अपनी कुल देवी के दर्शन किये । प्रसन्नवदना देवी दिव्य वाणी से कहतो है बेटि ! दुःखी मत हो । मैने ही तेरे भाग्यशाली बेटे को फूलों के ढेर से हटाकर सुरक्षित स्थान में पहुंचाया है। तेरे पास रहने में उसे अधिक कष्ट उठाना पडता । आज से बारह वर्ष बाद वह तेरा बेटा श्रीचन्द्र राजाधिराज बन कर अचानक ही तुम लोगों को मिलेगा । मैं तुम्हारी कुल देवी हूँ"।
इस प्रकार दिव्य स्वप्न देखकर सहसा रानी जागृत हो जाती है, और बडे प्रसन्न मन से सैन्द्री आदि सखियों को सारा सुखद स्वप्न वृत्तान्त कह सुनाती है । सखियों ने भी रानी का अभिनंदन करते हुए बड़ी खुशी के साथ मंगलाचार किया। ____ पुत्र मिलन की पुनीत आशा से सखियों के साथ रानी सूर्यवती दान-पुण्य देव पूजन, जप-तप, नवकारमन्त्र स्मरण आदि धर्मकृत्य विशेष रूप से करने लगी। धर्म में पहिले से भी कई गुनी अधिक श्रद्धा उसकी होगई।