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( ४६ ) गुप चुप उसके घर आया । छिपे हुए धरण ने विस्फारित नेत्रों से उसे देखा । मन में कहने लगा अरे ! यह पापी क्षत्रिय रणधीर मेरे घर पर कैसे आया ? ___उमा ने घर का द्वार बंद कर रणधीर को प्यार से स्नान कराया । बढिया तेल फुलेल लगाये । वस्त्र पहिनाये बाद दोनों ने तैयार रसवती का रसास्वाद लिया। खा पी कर प्रसन्न हुए । भारी प्रेम और उमंगसे दोनों नेरमण किया । रति खेद से खिन्न दोनों को निद्रा आगई। दोनों को सोया हुआ देख कर धरण क्रोधित होकर नीचे आया। विचारने लगा दोनों को मारना ठीक नहीं । क्यों कि स्त्री को मारने का पाप तो मुझे पहिले ही लग चुका है। ऐसा विचार कर उसने कोतवाल के पुत्र रणधीर को तलवार से मार दिया । स्वयं किंवाड़ खोल कर वहीं आगे होने वाली घटना को देखने के लिये ठहर गया।
इधर रणधीर के खून से लथपथ होने पर उमा जाग उठी । अरे ! यह क्या हुआ ? किसी ने इसे मार डाला । ऐसा कहती हुई वह द्वार की ओर देखती है तो द्वार खुला पड़ा था। उसने निश्चय किया कि किसी दुश्मन ने मेरे प्यारे को मार डाला है। उसने तत्काल शोच विचार कर उस मुर्दे और को तलवार को एक मजबूत चादरे में बांध कर