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उसने नई व्याई हुई गायों के मधुर और पौष्टिक दूध में थोड़ा सा पानी मिलाकर लघु और सुपाच्य बनाते हुए उसमें मिश्री मिलाकर बहुत स्वच्छता के साथ उबाल लिया । एक बन्द कमरे में ऊंची कनारवाले चांदी के थाल में दूध पिरस कर सुन्दर पर्णकुटी में चन्द्रमा की चांदनी को आने योग्य गुप्त छेद कर दिया । चन्द्रमा से प्रतिविम्बित दूध को ब्राह्म-मुहूर्त में बड़ी चतुराई के साथ महारानी को पिला दिया। वह इस प्रकार के चन्द्रपान से बड़ी संतुष्ट हुई। . चन्द्र पान के दोहद की पूर्ति से प्रसन्न हुए राजा रानी ने अपने पुत्र का नाम गर्भ में रहते हुए ही उस स्वप्न के अनुसार श्री चन्द्रकुमार रखें दिया । नामाक्षरों से अंकित हीरे से जड़ी हुई एक सोने की अंगूठी भी बनवा दी। इस सरह माकी पुत्र की सालाना के राजा रानी इतने खुश हो रहे थे कि उनकी सुकी विलोकी में भी समाधी-सही ।