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( ७६ ) तरफ डाल आती है । उसे ही राजकुमार को बाहर ले जाने का काम सौंपा जाय । प्रतिदिन के व्यवहार से उस फूल लाने वाली मालन पर सिपाही शक न करेंगे।
सूर्यवती ने सैन्द्री की राय की प्रशंसा करते हुए कहाँ हे सखि ! तुम धन्य हो । तुम्हारी बुद्धि देवताओं से भी बढकर है। तुम्हारी सलाह ने मुझमें जीवन ला दिया है । वास्तव में तुम भारी शोक को भी हरने वाली हो ।
इस प्रकार की मंत्रणा करते २ रात्री बीत गई। मानों उस कुमार के दर्शन के लिये उदयाचल के ऊंचे शिखर पर सूर्य देवता अपनी सुनहरी किरणों को फैंकने लगे। सखियों ने कुमार को हाथों हाथ अपनी २ गोदी में लेकर किसी ने तिलक, किसी ने अंजन और किसी ने वस्त्राभूषण से सुसज्जित किया। महागनी सूर्यवती ने भी अपने पुत्र को गोद में लेकर बड़े प्रेम से बहुत देर तक वृषित नयनों से निहारते हुए खूब दूध पिलाया । वह अपने आप कुमार को सम्बोधित कर कहने लगी-"प्यारे श्रीचन्द्र ! कैसे तुम अकेले रहोगे ? पहाड़ों-जंगलों में कौन तुम्हारी रक्षा करेगा ? अपने कमल के समान कोमल मुख के जल्दी दर्शन देना"-इत्यादि वचन वह कह ही रही थी कि इतने में पहिले से आज्ञा-प्राप्त वह वन-मालिन