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उसके रुकते ही उनमें से एक ने कहा, "पुत्र को किसी सन्दुक आदि में छिपा देना चाहिये"। इस बात को सुन दूसरी बोली यह उपाय तो ठीक नहीं। क्योंकि ये लोगजब बालक को खोजने के लिये बल पूर्वक प्रविष्ट होंगे तब हममें से कौन इनको रोक सकेगा ? । इन घातियों के सामने हमारा बालक कब तक छिपा रह सकता है। क्या बादलों से घिरे हुए चन्द्रमा को राहु नहीं ग्रसता ? अतः हे सैन्द्री ! तुम बडी बुद्धिमती हो। तुम्हीं इसबाल-रक्षाका कोई उपाय बतायो । क्योंकि जो काम बुद्धि से होता है वह न तो बल से होता है, न भाई बन्धुओं की सहायता से ही हो सकता है अतः तुम कोई अपनी बुद्धि का चमत्कार दिखा दो।
इस पर सूर्यवती ने कहा 'सखि ! मैंने पूर्व जन्म में कोई . बडा भारी पुण्य किया था जिमसे मैंने इस जन्म में ऐसे पुत्र-रत्न को पैदा किया है । अब उसकी रक्षा के उपआय को तुम्हारी प्रशस्त बुद्धि ही निश्चित कर सकती है।