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को पाखड़ी के समान विशाल नेत्रवाले और अष्टमी के चन्द्रमा के जैसे सुन्दर ललाट वाले बालक को देखकर रानी प्रसन्नता के अतिरेक से अपने को भूल गई । उसका मन मयूर नाच उठा, हर्ष के आंसू और शरीर में रोमांच हो आया । पर क्या करती बाहर यमदूतों की तरह खड़े जयकुमार के सिपाहियों को देख उसकी बड़ी २ उमंगें और शायें विलीन होगई । उसने अपनी प्यारी सखी सैन्द्री और दूसरी सखियों को गद्गद् स्वर से कहा" सखियों ! मेरे हीन - कर्मों की ओर तो नरा निहारो, देखो ऐसे सुअवसर में महाराज भी यहां नहीं हैं। पितृ वर्ग भी उपस्थित नहीं हैं। मैं बधाई द्वारा किसको मानन्दित करू | मुझ भाग्य - हीना को धिक्कार है । सखि ! नाच गान आदि महोत्सव तो दूर रहे आज थाली का बजाना भी खतरे से खाली नहीं है । यद्यपि यह पुत्र सत्र गुणों की खान है, फिर भी इसका यह जन्म समय संपूर्ण प्रकार के हर्षो का शोषण करने वाला है ।
यह सुनकर सब सखियाँ उसके दुःख से बड़ी दुःखी और अपनी स्वामिनी से बोली "महारानीजी ! अपने चित्त में दुःख मत कीजियें, अभी प्रसूति समय है । बुद्धि हीन हो जाती है । इसलिये आप जैसे विवेकियों को चिंता नहीं करनी चाहिये । इस दुःख से, ऐसे विकल्पों से, ऐसी