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- इस प्रकार इन चारों स्वप्नों को देखकर वह जाग उठी और उमने राजा को बड़ी नम्रता से वे चारों स्वप्न कह सुनाये । राजा ने भी इन स्वप्नों को सुनकर और पृथक २ उनके फलों का विचार करके रानी से कहा कि हे देवि ! तुमने बड़े ही सुन्दर स्वप्न देखे हैं अतः तुम्हारे घड़ा भाग्यशाली पुत्र होगा।
१ यह बात सुन कर वह बड़ी प्रसन्न हुई, और धर्म की
महिमा गाती हुई अपने महल को चल दी।
. दूसरे दिन प्रातःकाल दरबार के समय महाराजा प्रतापसिंह अपनी राज-सभा में पधारे । सभा में पहले से ही उपस्थित अमीर उमरावों सरदार और सामन्तों ने तलवारें निकाल कर महाराजा का मूक अभिवंदन किया । अभिवन्दन के बाजे बज उठे। चारणों और बन्दीजनों के स्तुति पाठ और जय जयाराव से सभा-मण्डप गूंज उठा। कुछ ही क्षणों में वे रत्न-जटित-सिंहासन पर आ विराजे । संकेत पाकर सब यथा-स्थान बैठ गये।
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इसके बाद सभी मंत्रियों निमित्तज्ञों और स्वप्न के फलों को बताने वाले-स्वप्न पाठकों को बुलाकर राजा ने विधि पूर्वक महारानी द्वारा देते हुए स्वप्नों के फल पछे।