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जाय । अगर ऐसा होना ही है तो उसे रोक भी कौन सकता है ।
अवश्यं भाविनो भावा, भवन्ति महतामपि ।
नम्रत्वं नीलकएठम्य महाहि-शयन हरेः ॥
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कहा है, अवश्य होने वाले भाव बड़े आदमियों के भी हो के रहते हैं। जैसे नीलकण्ठ महादेव की नवावस्था, और हरि का शेष की शय्या पर सोना ।
ऐसा होने पर भी इतना तो अवश्य करना होगा कि हमारी विमाता सूर्यवती के पुत्र हो तब उसे गुप्तरीति से' मौत के घाट उतार देना चाहिये ।
जब ये चारों भाई इस प्रकार एकान्त में आपस में विचार विमर्श कर रहे थे, उस समय रानी सूर्यवती की सखी सैन्द्री सीढी के नीचे खडी उनकी ये सब बातें सुन रही थी । उसने अपनी स्वामिनी रानी सूर्यवती को निमि राज्ञ की बात से लेकर अब तक की सारी घटना जल्दी से सुना दी । यह सुन रानी हर्ष और विषाद से मुक्त हो, अपनी सुखी सैन्ट्री से बोली "हे सखि ? तुम हो बताय अब मैं क्या करू ं ?" न मालूम अत्र क्या होगा ? अगर तू कहे तो मैं यह सारा हाल महाराजा से कहूँ ? अथवा इस सोच विचार से क्या जो होना होगा सो तो होगा,