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केवल तीन ही पुत्रों को आड़े हुए देखकर जय के अनासमन का कारण पूछा। उन्होंने निवेदन किया कि महाराज १ जयकुम र बीमार हैं । अतः आने में अशक्त हैं । कुमारों के कहने पर विश्वास न करते हुए महाराज ने उसे बुलाने को फिर सिपाही भेजे । जय ने उनको भी कुछ घूस देकर और बीमारी का बहाना बनाकर वापस लौटा दिया ।
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वारंवार बुलाने पर भी जब वह महाराज के पास न आया,
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तो उन्होंने सारी बात भावी पर छोड़कर उसकी उपेक्षा कर दी | एक बड़ी सेना के साथ प्रयाग भी कर दिया - कहा भी
यति यदि भानुः पश्चिमायां दिशायां, प्रचलति यदि मेरुः शीततां याति वह्नि । विकसति यदि पद्म पर्वताम्र शिलायां, तदपि चलति नो या भाविनी. कर्म-रेखा ।।
यही वर्ष पश्चिम दिशा में उदित हो जाय, यदि मेरु चलायमान हो जाय, यदि आग शीतल हो जाय, और यदि पकी शिक्षा पर कमल खिल उठे वो भी भविष्य की कर्म ऐसा कभी नहीं टल सकती ।
नाना देशों के मालिक राजा स्थान २ पर अपनी २ सेनाओं के साथ आकर महाराज की सेना में मिलने लगे । इस तरह महाराजा प्रतापसिंह की फौज एक बड़ी वेगवती