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ही । मला ऐसी किसमें शक्ति है जो इस कर्म रेखा को मिटा सके १ | अतः धैर्य और शान्ति ही इस चिन्ता के भार को हलका कर सकती है।
ऐसा कह वह अपने कार्य में लग गई, और दिनों दिन परमेष्ठी स्मरण, तपस्या, एवं देव-दर्शन में उत्साह
और उमंग बढाने लगी। .. . ____एक समय रात्री में सुख-पूर्वक नींद में सोयी हुई, महारानी : सूर्यवती ने चार भिन्न २ स्वप्न देखे । प्रथम स्वप्न तो उसने यह देखा कि-निर्मल पूर्णिमा की रात्री में आधी रात के समय चन्द्रमा का बिम्ब वेग से अपने स्थान से चलकर फिर वहीं अपने नियत स्थान पर प्रा गया। दसरा स्वप्न उसे यह दिखाई दिया कि किसीने लाकर एक खिला हुआ कमल उसके हाथ में दिया, और उसने मुरझाते हुए उस कमल को अपने हाथ से विकसित किया। तीसरे स्वप्न में उसने देखा कि अमृत के समान सफेद जिन मन्दिर वर्षा के कारण स्याम पड़ गया और वारंवार मन्दिर का यह हाल न हो ऐसा विचार कर महाराजा ने उसे मणिमय बना दिया। चौथे स्वप्न में वह क्या देखती है कि किसी ने कहीं से आकर एक बन्द छत्र उसके सिर पर रखा, और वह छत्र अपने आप खुलकर तन मया ।