________________
(५० ) गठरी सिर पर लादे घर से निकल पड़ी धरण भी पछे २ हो लिया। शहर के बाहर किसी शून्य कूप में उस लाश को फेंक कर जल्दी ही घर लौट आई।
घर के बाहर खड़े धरण ने अपने मनमें उमा के इस धृष्टता-पूर्व कुकर्म की जी भर कर निन्दा की । इधर उमा ने घरमें जाकर जल्दी से पक्वान्न आदि को एक बड़े बर्तन में भर कर बाहर निकली, और घर के द्वार मजबूती से चंद कर उस बर्चन को सिर पर उठाये चल पड़ी।
धरण ने गुप्त रीति से उसका पीछा किया जल-मार्ग से नगर की सीमा को पार करके श्मशान में होती हुई, वह एक पहाड की गुफा में जा घुसी। उस गुफा में एक बहुत बडा सुन्दर विशाल भवन था । स्थान २ पर रखी हुई दीपमालाओं से वह जगमगा रहा था। उसके मध्य भाग में एक सुन्दर सिंहासन पर जोगणियों के समूह से घिरी हुई खर्परा नाम की प्रमुख योगिनी विराजमान थी।
उमा को देख जोगणियाँ मारे प्रसन्नता के उछल पडी और उमा आगई इस प्रकार हर्षधनि करने लगी । उमाने अपने साथ लाई हुई मिठाइयों द्वारा उन सब को संतुष्ट किया, और फिर सादरनमस्कार करके उस प्रधान योगनी के चरणों में बैठ गई । खश ने इधर उधर की बात चीत के