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और प्राप्त वचनानुसार सुवर्ण पुरुष बनवा कर आप विधिपूर्वक विद्या सिद्धी के लिये प्रयत्न करें।
उसके इस उदारता मुख से अत्यधिक प्रसन्न हो कर और अपरिचित मनुष्य में मी सहसा विश्वास कर लेने की स्वाभाविक वृचि को देख कर प्रशंसा करके उस सिद्ध पुरुष ने कहा "मुके रत्नों से कोई प्रयोजन नहीं है, तुम इन रत्नों को सुरक्षित रखलो' मैंने तो. सिफ तुम्हारी परीक्षा ही की है। क्यों कि एकदम किसी पर विश्वास नहीं किया जावा.। सुवर्ण पुरुष का मतलब भी सोने के पुतले से यहां नहीं है, किन्तु श्रेष्ठ-वणाले उत्तम-पुरुष की पात्रता से ही देखी जाती है । इस लिये तुम्हें पात्र देख कर और तुम्हारी नम्रता से संतुष्ट होकर गुरु द्वारा दी हुई उस श्रेष्ठ विद्या को मैं तुम्हें दे रहा हूं। अच्छे भाग्य से प्रेरित हो तुम यहां आये हो।
सिद्ध कहता है-मै वृद्ध हो गया हूँ। मेरे पास कर्म पिशाचिनी नाम की सिद्ध विद्या है उसे तुम भक्ति पूर्वक ग्रहण कगे। जो तुम्हें त्रिकाल संबंधी समी वस्तुओं का ज्ञान देगी । घरल ने उस विद्या को विधि पूर्वक आदर से ग्रहण की। विद्या-सिद्धि होने पर उसकी चारों तरफ प्रसिद्धि हो गई। कुछ दिन उस सिद्ध पुरुष की सेवामें