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धरण की बात को सुन कर उत्तर देते हुए मुनीश्वर ने फरमाया हे भव्यात्मा ! तुम पापभीरू हो इसलिये निश्चय ही लघुकर्मा हो । तपश्चर्या से सारे पाप कर्मों की निर्जरा हो जाती है । अतः तुम श्रीसिद्धाचल तीर्थाधिराज जो कि सौराष्ट्र देश में वर्त्तमान है-वहां जाकर तपश्चर्या करते हुए विधि पूर्वक श्री नवकार मन्त्र का जाप करो जिससे तुम्हारा परम कल्याण होगा ।
मुनि महाराज के वचनों को सुनकर उनमें श्रद्धा को रखता हुआ वीतराग दर्शन में आत्म शांति को देखता हुआ मुनिमहाराज को वारंवार वन्दना की। अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिये वह श्री तीर्थाधिराज शत्रु जय की तरफ चल पडा । चलते २ अनेक ग्राम-नगरों को पार करता हुआ इस कुशस्थल- पुर में या पहुँचा हूं। मैं वही धरण हूँ। उन सिद्ध-पुरुष की कृपा द्वारा मन्त्र-विद्यासिद्धि से मैं भूत-भविष्य और वर्त्तमान ऐसे तीन काल की बातों को जानता हूँ। इसी लिये सब लोग मुझे निमिचिया कह कर पुकारते जानते हैं ।
धरण के विस्तृत चरित्र को सुनकर चारों राज - कुमार बड़े विस्मित हुए और आपस में कुछ विचार करने लगे । कुछ सोच कर उनमें से ज्येष्ठ राजकुमार जय ने उस नैमितिक