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रह कर बाद में वह उसकी आज्ञा पाकर पृथ्वी पर घूमने लगा। १. जंगलों, पहाड़ों, मगरों, और गावों में तरह तरह के कौतुक देखता हुश्रा, अपनी इच्छानुसार घूमते हुए उसने एक दिन किसी आम के पेड़ की छाया में पैठे हुए एक साधु-महात्मा के दर्शन किये। बड़ी ही श्रद्धा और भक्ति के साथ वंदन किया एवं अपनी आत्मा को धन्य धन्य समझता हुआ. उन साधुराज के श्रीचरणों में बैठ गया। मुनिराज ने उसे 'धर्मलाम'-का पाशिर्वाद दिया। साथ ही परम विजयी: जैन-धर्म को उपदेश देना शुरु किया ।
हे भव्यात्मन् ! दुर्गति में पड़ते हुए प्राणी को जो बचाता है, और सन्मार्ग में लगाता है। उसी का नाम धर्म है। वह अहिंसा संयम और तप के द्वारा प्राप्त होता है। जिस प्रकार मेरे पास मुझे प्यारे हैं, उसी प्रकार दूसरे शरीरधारी को भी उसके पास इतने ही प्यारे हैं। ऐसा । समझ कर बुद्धिमानों को चाहिये कि प्राणी-मात्र की रचा. करें। अहिंसा का ठीक से पालन जीवन को संबम में रखने से होता है। संयमी अनदली ही सदा सुखी रहता है।... संयम रखने के लिके मन वचन काबा की चंचलता, पर