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वीर रसका कभी बीभत्स रस का संचार होने लगा । हास्य और श्रृङ्गार रस तो लुप्त प्राय होगये । परम सुखदायी । शान्तरस की तरफ झुकते हुए उसने अपनी स्त्री के प्रति घृणा दिखाते हुए कहा कि धिक्कार है इस के कर्मों पर लानत है इस के विचारों पर, और धू है इस के दुराचारों पर । बली देने के लिये यदि यह वश्य चूर्ण से मुझे वश कर लेगी तो सांकल से बंधी गाय की तरह मैं अन्यत्र कैसे जा सकूंगा ?
इस प्रकार विचार कर वह वहां से सीधा मित्र के घर पहुँचा । मित्र के पूछने पर जो घटनायें घटी थी वे सभी सचाई के साथ उसने कह सुनाई । मित्र ने कहा - हेमित्र ? दुखः, भय, निन्दा से क्या है ? स्त्रियां स्वभाव से ही चंचल होती हैं । कहा भी है:
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रवि चरिय गह चरियं, ताराचरियं च राहु चरिर्यच । जाति बुद्धिमन्ता महिला चरियं न याति ॥ जल मज्मे मच्छपयं, आकासे पंखियाण पयपंती । महिला हियय मग्गो, तिन्हिवि लोए न दीसंति ॥
सूर्य ग्रहों के वारा के और राहु के चार को पण्डित लोग जानते हैं पर स्त्रियों को नहीं जान सकते । पानोमें मछलि यों के पदचिन्ह, आकाश में पंखियों के पदचिन्ह