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( ५१ ) बाद उमा से पूछा कि क्या तुमने उस हमारे दिये मंत्र की साधना करली ? उमाने उत्तर देते हुए कहा स्वामिनि ? मन्त्र आपकी कृपा से सिद्ध हो चुका है। अब मैं तरुत्पत पेड से उडने की-विद्या चाहती हूँ अगर आप देंगी तो बड़ी कृपा होगी।
खर्परा ने कहा, यदि तेरी यह इच्छा है तो तू मुझे। महाबली दे। यह सुन उमाने कहा कि काली चौदस को .. मैं अपने पति की बली आपको दूंगी । ठीक कह कर योगिनी ने उसे विदा की। रवाना होती हुई उसने योगिनी से वशी करण चूरण मांगा। योगिनी ने पूछा कि पहले दिये का क्या हुआ ? उमाने कहा माँ ? उससे एक आदमी को मैंने वश किया था, पर वह बिचारा आज मर गया। इसी लिये मुझे उस वश्य चूर्ण की आवश्यकता हुई है। उस की याचना से खपरा ने उसे वैसा ही चूरण दिया। वह खर्परा को नमस्कार कर, वहां से चल कर उसी मार्ग से अपने घर लौट आई।
इधर धरण भी उसके इस प्रकार के चरित्र को देख कर और जोगणियों की बातें सुन कर दिल में बहुत डरा उसके रोम २ खड़े हो गये । कलेजा धक धक करने लगा। उसके भाचर्य की सीमा न रही। उसके हृदय में कभी