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शुभ मुहूर्त में धरण ने उमादेवी का पाणिग्रहण किया ।
उमा बड़ी ही उद्धृत क्रोधी और सबसे अप्रिय भाषण करने वाली थी । घर के काम काज में कभी हाथ नहीं बँटाती थी, और पद २ में घर के मर्म को प्रकाशित करती रहती थी । घर का सारा काम काज सासु- नागिला को ही करना पड़ता था । शेरनी के सामने बकरी की सी दशा उमा के सामने नागिला की थी। उसी के दुःख में दुःखी रहते हुए श्रीधर और नागिला कालान्तर में काल कवलित हो गये । उमा की कपट लीला में धरण भी चौंधिया गया । सब तरह से उसके हृदय में इतना दृढ़ विश्वास पैदा कर दिया कि कहीं संदेह नाम मात्र को भी नहीं रहा। थोड़े ही दिनों में वह उमा का भावुक बन गया ।
एक दिन सोमदेव नाम के अपने मित्र के सामने धरण ने अपनी स्त्री उमा की बड़ी तारीफ की। उसने कहा भाई तुम जो कहते हो ठीक हो सकता है, परन्तु नीति-शास्त्र में कहा है कि गुरुओं की स्तुति प्रत्यक्ष में, मित्र- बन्धुओं की परोक्ष में, कर्मचारियों की और नौकरों की काम हो जाने पर, स्त्रियों की उनके मरने के बाद में और पुत्रों की तो कभी करनी ही नहीं चाहिये १ कहां तक कहूं । स्त्रियाँ तलवार की धार से भी तेज, हिरण के सींग से भी अधिक टेढी, नदी की तरह नीच गामिनी और