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( ३६ ) कुतूहलप्रिय राज-कुमारों ने अपने सिपाहियों को भे. कर उस निमित्त को अपने पास बुलाया। पारस्परिक स्वागत विधि होने पर निमित्तज्ञ से पूछा- आपका क्या परिचय है ? नैमित्तिक ने कहा मेरा परिचय एक कहानी रूप है । आप लोग सुनना ही चाहते हैं तो सुनियें ।
यहां से पश्चिम में राजा शुभगांगदेव की राजधानी सिंहपुर नाम का नगर है। उसमें श्रीधर नाम का एक धनी ज्योतिषी था । उसके नागिला नाम की स्त्री थी। उनके धरण नाम का पुत्र था । वहीं प्रियंकर नाम का एक जैन ज्योतिषी रहता था। उसके शीलवती नाम की स्त्री और श्री देवी नाम की पुत्री थी। वह जैन धर्म में अनुरागिणी और परम रूप लावण्य शालिनी थी।
श्रीधर की मांगणी से प्रियंकर ने बड़े ठाठ के साथ सुमुहूर्व में धरण के साथ श्रीदेवी का विवाह कर दिया । प्रियंकर ने शक्त्यनुसार दहेज और कुलोचित शिक्षा देकर श्रीदेवी को ससुराल में विदा की। .
श्रीदेवी अपने नये संसार-ससुराल में लज्जा रखती हुई लगन से सारे काम काज करने लगी। फुरसत से धार्मिक कृत्यों में भी उपयोग देने लगी। मित और मधुर भाषण से उसने अपनी ओर से ससुराल वालों को प्रसन्न