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इधर उसकी सास उसे दुःख देने पर ही उतारू हो चुकी थी । वह घर की नई पुरानी टूटी फूटी वस्तुएँ अपने पुत्र को दिखाती और बहू के विरुद्ध कान भर २ उसे क्रोधित करती और रुष्ट हुआ वह भी उसे पीटता एवं तरह २ के दुःख दिया करता था । इतना होने पर भी वह कुलीन बहू दूसरों को दोष न देती हुई अपने पूर्व कर्मों के फल को ही इसका कारण मानती थी ।
इस प्रकार उसी दशा में रहते उसके कई दिन बीत गये । एक समय रात्री में स्वसुर की अँगुठी घर में कहीं गिर गई । किसी को पता तक न चला । प्रातःकाल जब श्री देवी ने घर में बुहारा लगा कर कूड़े करकट को एक स्थान पर जमा किया तो उसमें वह गुठी मिली, और उसको उसने अन्दर के कोठे में रखदी । इसके बाद वह गोबर इकट्ठा करने पशुओं के बाड़े में चली गई ।
" प्रभाते करदर्शनम् " के नियम से श्वसुर ने दोनों हाथों को मुख पर फेर कर रेखा दर्शन करते समय उंगली गुठी न देख घड़ाई हुई अवाज से कहा कि क्या करू ? मेरी तो अंगुठी कहीं गिर पड़ी, क्या किसी ने देखी है ? यह सुन सब एक दूसरे को आपस में पूछने लगे, इधर उधर खोजने लगे पर अ ंगुठी का पता न चला तब वे सब निराश होकर बोले कि वह तो गई अव