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ठहरने का अनुरोध किया । मगर उन्होने अधिक ठहरने में अपनी असमर्थता जाहिर करते हुए राजा दीपचन्द्र के प्रति अनुपम आदर की भावना व्यक्त की ।
राजा ने अपने सामर्थ्यानुसार अपनी पुत्री को हाथी घोड़े दास दासियां सोने और रत्नों के आभूषण, बहुमूल्य पोशाकें आदि देने योग्य वस्तुओं को दहेज में देकर सैन्द्र आदि सखियों के साथ उसे विदा किया | राजा रानी राज्य के उच्च कर्मचारी और प्रियजन सभी अपनी राजकुमारी महारानी सूर्यवती को पहुँचाने के लिये साथ चले । शास्त्र वचन और लौकिक रिवाज के अनुसार पद्मसरोवर के आने पर सब वहां ठहर गये ।
यथास्थान पड़ाव पड़ गया। सभी अपने २ काम में लग गये । महारानी सूर्यवती अपने माता-पिता से दिल खोल कर मिली । अपने प्रियजनों को रुलाती हुई स्वयं आंसू भर लाई । सबने उसे अंतःकरण से अनेकों प्रकार के आशीर्वाद दिये । उसने अपने स्नेहमय हृदय को कड़ा करके अपने माता-पिता से अस्फुट स्वर में बिदा मांगी।
माता-पिता उस अपनी लाडली बेटी की वियोग व्यथा से विह्वल हो उठे । उन्होंने जिसे आज तक प्यार 1 से पाला पोसा था, जिसे देखकर वे फूले न समाते थे,