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( ३१ ) हुए महाराजा सिंहपुर पधारे। वहां थोड़े दिन विश्राम करके शुभगांग से विदा लेकर राजा दीपचन्द्र देव के साथ पुनः दीपशिखा नगरी में महाराजा लौट आये।
दीपशिखा में विजयी योद्धा के वेष में प्रवेश करते हुए महाराजा का भारी स्वागत हुआ। शूर दस्यु के संताप की समाप्ति से सब की अन्तरात्मा हृदय से आशीर्वाद दे रही थी। पुष्पवृष्टि और जयनादों के बीच महाराज अपने निवास स्थान पर पहुँचे । महारानी सूर्यवती ने मांगलिक वस्तुओं से भरे थाल को लेकर द्वार पर महाराज को बधाये । विशाल भाल पर तिलक किया। अक्षतों के स्थान पर मोती चिपकाये । आरती उतार कर महाराजा को महल में प्रवेश कराया । दान-मान-सन्मान से संतुष्ट हुई प्रजा ने अपने जीवन को उस रोज धन्य माना ।
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