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पैदलों से तो मैदान का मैदान साफ हो जाता था। - सारथी ने महाराजा के रथ को शत्रु की ओर बढाया। महाराजा की वाण वर्षा से परेशान हुआ भीलराजा शूरः । भागने की चेष्टा में हाथी को प्रेरणा करने लगा पर सारथी ने रथ को उसके चारों ओर इस प्रकार घुमाया कि वह भाग न सका । दोनों वीरों में घोर घमासान युद्ध होता रहा । दोनों एक दूसरे को हराने की चेष्टा में थे, . पर अन्त में महाराज ने उसे अपने बाणों से क्षत-विक्षत करके हाथी पर से गिरा दिया और जीवित पकड़ कर उसे लकड़ी के पीजड़े में डाल दिया। उसके जयकलश नाम: के गधहाथी को अपने वश में करके महाराजा ने दूसरे भील सामन्तों को भी काबु में किया । बिना नायक की भील सेनायें हताश होकर भाग गई।
चारों ओर विजय दुंदुभियाँ बजने लगी । जय ध्वनि सुनाई देने लमी घेरा टूटने पर शुभगांम राजा ने भी नगर के बाहर आकर महाराजा को बड़े आदर के साथ प्रणाम किया । महाराजा ने भी उन्हें अनेक प्रकार से सन्मानित करके अपनी उदारता का परिचय दिया।
... बाद में उस भीलराजा शूर को अपने साथ लेकर