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( २८ ) भीलराज शूर अपनी शबर सेना के साथ बड़े वेग से समर भूमी में जा पहुंचा। .. इधर महाराजा प्रतापसिंह भी अपने शत्रु को परास्त करने के लिये रण-भूमी में आ डटे । ज्योंही उन्होंने अपनी. फौज को देखा तब उन्हें मालूम हुआ कि सेना के सारे हाथी मद रहित निद्राग्रस्त से हो रहे हैं । आश्चर्य में डूबे महाराज ने राजा दीपचन्द्र से इसका कारण पूछा कि यह क्या बात है ? उनने कहा देव ! भीलराजा शूर का हाथी- गंध हाथी है जिसकी गंध से ये सारे हाथी मद रहित हो गये हैं । महाराजा इस बात को सुनकर कर्तव्य मृढ से हो गये।
- इसी समय रथ विद्या में निपुण कलावान ने महाराज से अर्ज की, आप रथ पर सवार होकर मेरी भी कला देखियें । उसकी इस बात को सुनकर महाराजा बहुत प्रसन्न हुए और अपना दिव्य धनुष लेकर रथ पर सवार हो गये । अब क्या था ! रण का बाजा बज उठा। युद्ध प्रारम्भ हो गया। रथियों से रथी, पैदलों से पैदल और सवारों से सवार भिड़ गये । तोपें भी भीषण आग उगलने लगी। जिस हाथी के गोला लग जाता था वह वहीं ढेर हो जाता था। घोड़े सवार सहित घायल हो जाते थे और