Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१८ उ०८ सू०२ गमनमाश्रित्य परतीर्थिकमतनिरूपणम्१६५ खलु गुणशिलस्य चैत्यस्य उद्यानस्य 'अदरसामंते' अदूरासन्ने-नातिदूरे नाति समीपे इत्यर्थः 'बहवे अनउत्थिया परिवसंति' बहवोऽन्ययूथिकाः अन्यतैर्थिकाः परिवसन्ति । 'तए णं समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे' ततः खलु श्रमणो भगवान महावीरो यावत् समवस्तः, अत्र यावत्पदेन 'पुवाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे जेणेव रायगिहे नयरे जेणेत्र गुणसिलए चेहए तेणेव 'इति संग्रहः करणीयः' जाव परिसा पडिगया' यावत् परिषत् पतिगता, अत्र यावत्पदेन भगवदागमनश्रवणानन्तरं परिषत् धर्मश्रवणार्थ नगरानिर्गता धर्मकथोपदेशोऽभूत् , ततः परिषत् भगवन्तं वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा प्रतिगता, इत्यादि संग्रहो भवतीति । 'तेणं कालेणं तेणं समएणं' तस्मिन् काले तस्मिन् समये 'सम: गृह नगर में गुणशिलक नाम का उद्यान था उसमें पृथिवीशिलापट्टक था । 'तस्स णं गुण.' उस गुणशिलक उद्यान के पास न अतिदूर न अति नजदीक स्थान में 'बहवे.' अनेक अन्य तैर्थिकजन रहते थे। 'तएणं समणे श्रमण भगवान् महावीर यावत् वहाँ पर पधारे यहां यावत्पद से 'पुव्वाणुपुद्धि चरमाणेगामाणुगामं दूइज्जामाणे जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणसिलए चेहए तेणे' इस पाठ का संग्रह हुआ है 'जाव परिसा पडिगया' यावत् परिषदा विसर्जित हो गई यहां यावत्पद से ऐसा पाठ ग्रहण कर लगा लेना चाहिये कि जब प्रभु वहां पधारे तब लोगोंने उनका यहाँ आगमन सुना, सुनकर धर्मश्रवण करने के लिये उनका समुदाय प्रभु के पास आया प्रभुने धर्मोपदेश दिया धर्मोदेश सुनकर उस समुदाय ने प्रभु की वन्दना की, नमस्कार किया वन्दना नमस्कार कर फिर वह जहां से आया था, वहां पर वापिस चला गया। तेणं कालेणं तेणं समएण' उस काल में और उस समय २७ता सता "तए णं समणे०" श्रम मवान् मडावी२ २१ाभी "पुवाणुपुब्वि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्ज माणे जेणेव रायगिहे नयरे जेणेव गुणखिलए चेइए वेणेव उवागच्छइ” तीथ रेनी ५२ ५२।नुसार वि.२ ४२di ४२di मन से मथी બીજે ગામ વિચરતાં જ્યાં આગળ રાજગૃહ નગર હતું અને તેમાં પણ જ્યાં शुशित चैत्य-3धान तु त्यां ५५. " जाव परिसा पडिगया" यावत् પ્રભુનું આગમન સાંભળીને પરિષદા પ્રભુને વંદના કરવા આવી પ્રભુએ તેમને ધર્મદેશના આપી તે પછી પ્રભુને વંદન નમસ્કાર કરીને પરિષદા પોતપોતાને स्थान पाछी ४. तेणं कालेणं तेणं समएणं' तेणे मनसमये "समणस्स
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩