Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीने कतिगन्धः कतिरस- कतिस्पर्शः मनसा, षट्पदेशिकस्कन्धे किन्यन्नो वर्णगन्धरसस्पर्शा विद्यन्ते १ इति प्रश्नः, उत्तरमाह-‘एवं जहा' इत्यादि, 'एवं जहा पंचपरसिए जाव चउफासे पन्नत्ते' एवं यथा पश्चप्रदेशिको यावत् चतुःस्पर्शः प्रजाता, पश्चमदेशिकातिदेशमेव विवृण्वन् आह-'जइ एगबन्ने' इति, यदि षट्पदेशिकः स्कन्ध एकवर्ण:-एकवर्णवान् तदा--'एगवनदुवन्ना जहा पंचपएसियस' एकवर्णद्विवौँ यथा पञ्चमदेशिकस्य, येन प्रकारेण पञ्चमदेशिकस्कन्धस्य एकवर्णद्विवर्णवर्ष कथितं तथैव षट् भदेशिकस्कन्धस्यापि एकवर्णवत्वं वर्णद्वयवत्वं च वक्तव्यम् । तथाहि-'सिय कालए य सिय नीलए य सिय लोहियए य सिय हालिदए य सिय अवयवी छ परमाणु मों के संयोग से जन्य होता है ऐसा वह षट्प्रदेशिक स्कन्ध कितने वर्णों वाला कितने गंधों वाला कितने रसों वाला
और कितने स्पर्शों वाला होता है ? अर्थात् षट्प्रदेशिक स्कन्ध में कितने वर्ण गन्ध रस और स्पर्श होते हैं ? उत्तर में प्रभु कहते हैं'एवं जहा पंचपएसिए जाव सिय चउफासे पनत्ते' हे गौतम ! जिस प्रकार से पंचप्रदेशिक स्कन्ध यावत् चार स्पर्शवाला कहा गया है उसी प्रकार से यह षटू प्रदेशिक स्कन्ध भी यावत् चार स्पर्श वाला कहा गया है । इसी विषय को अब विस्तारपूर्वक समझाने के लिये 'जइ एगवन्ने' इत्यादि सूत्रपाठ कहा जाता है-इसमें यह समझाया गया है-यदि वह षट्प्रदेशिक स्कन्ध एकत्रर्ण वाला या दो दो वर्णों चाला होता है तो इनके वर्णन की शैली जैसे पंचप्रदेशिक स्कन्ध के प्रकरण में कही गई है वैसी ही वह यहां षटू प्रदेशिक स्कन्ध के सम्बन्ध में भी जान लेनी चाहिये या कह लेनी चाहिये । खुलासा इस विषय વર્ણવાળે કેટલા ગંધવાળે કેટલા રસવાળે અને કેટલા સ્પર્શેવાળે હોય છે? અથત છ પ્રદેશવાળા સ્કંધમાં કેટલા વર્ણો, કેટલા ગંધ, કેટલા રસે અને કેટલા પશે હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ કહે છે કે'एवं जहा पंचपएसिए जाव चउफासे पण्णत्ते' है गौतम २ री पाय પ્રાદેશિક અંધ યાવત્ ચાર પૌંવાળો કહ્યો છે તે જ રીતે આ છ પ્રદેશવાળો સ્કંધ પણ યાવત્ ચાર સ્પર્શીવાળો કહ્યો છે. આજ વિષયને હવે સૂત્રકાર विस्तार ४ सभा 'जइ एगवन्ने' त्याहि सूत्रमा . ॥ सत्रथा એ સમજાવ્યું છે કે જે તે છ પ્રદેશવાળે સ્કંધ એક વર્ણવાળે અથવા બએ વર્ણવાળે હોય તે તે પાંચ પ્રદેશ સ્કંધનું જે રીતે એક અને બે વર્ણના સંબંધનું વર્ણન કર્યું છે, તે જ પ્રમાણે આ છુ પ્રદેશવાળા સ્કંધનું વર્ણન પણ
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩