Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 924
________________ ९१० भगवतीसूत्रे गुरु घुभ्यां शेपैः पइभिः सह अष्टाविंशत्यधिक शतम् । एवमेव शीतोष्णाभ्यामपि अष्टाविंशत्यधिकं शतम् एवं स्निग्धरूक्षाभ्यामपि अष्टाविंशत्यधिकं शतं भाति, तदेवम् अष्टाविंशत्युत्तरं शतस्य चतुःसंख्यया गुणने ५१२ द्वादशाधिकानि पञ्चशतानि मङ्गानां भवन्तीति । ___'जइ अनुफासे' यदि अष्टस्पर्शस्तदा वक्ष्यमाणप्रकारेण भङ्गा भवन्ति, तथाहि-'देसे ककवडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लक्खे' देशः कशी देशो मृदुको देशो गुरुको देशो लघुको देश: शीतो देश उप्णो देशः स्निग्यो देशो रूक्षो भवति १, देशः वर्कशो देशो मृदुको उष्ण स्पर्श के साथ शेष पदों को युक्त करके और उनमें एकत्व और अनेकत्व की विवक्षा करके १२८ भंग बन जाते हैं, तथा इसी प्रकार से स्निग्ध और रूक्ष स्पर्श की मुख्यता करके और उनके साथ शेष पदों का योग करके एवं उनमें एकत्व और अनेकत्व विवक्षित करके १२८ भंग बन जाते हैं, इन सब को जोडकर ५१२ भंग हो जाना है। ___'जह अट्ठफासे' यदि वह बादरपरिणत अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध आठ स्पों वाला होता है, तब इस प्रकार से उसमें भङ्ग होते हैं जैसे 'देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसे लहुए, देसे सीए, देसे उसिणे, देसे निद्धे, देसे लुक्खे' उसका एकदेश कर्कश, एकदेश मृदु, एकदेश गुरु, एकदेश लघु. एकदेश शीत, एकदेश उष्ण, एकदेश स्निग्ध और एकदेश रूक्ष स्पर्शवाला हो सकता है १ द्वितीय भंग इस प्रकार से हैએની સાથે બાકીના પદેને છને ૧૨૮ એક અઠયાવીસ ભંગ બની જાય છે. તથા એજ પ્રકારથી સ્નિગ્ધ અને રૂક્ષ સ્પર્શની મુખ્યતાથી અને બાકીના પદે તેની સાથે જવાથી અને તેમાં એકપણા અને અનેકપણાની યોજના કરવાથી ૧૨૮ એક અઠયાવીસ ભાગે બની જાય છે. આ બધા ભંગો કુલ મળીને ૫૧૨ પાંચસે બાર થઈ જાય છે. ___ 'जइ अदफासे न त माह२ परिणत मन्नत प्रशवाणे २४ मार સ્પશેવાળે હેય તે તે આ પ્રમાણેના આઠ સ્પર્શેવાળે હેઈ શકે છે તેના मन। प्रा२ मा प्रमाणे छ. नेम-'देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसे लहुए, देसे सीए देसे उसिणे देसे निद्धे देसे लुक्खे' ते ताना . દેશમાં કર્કશ, એકદેશમાં મૃદુ એકદેશમાં ગુરૂ એકદેશમાં લઘુ એકદેશમાં શીત, એકદેશમાં ઉoણ એકદેશમાં સ્નિગ્ધ અને એકદેશમાં રૂક્ષ સ્પર્શવાળ હોય છે. આ पडे ॥ 2.1 ॥ ते 'देशः कर्कशः देशः मृदुकः देशो गुरुकः देशो શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩

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