Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 938
________________ ९२४ भगवती सूत्रे युक्तेन अन्ये चत्वारो भङ्गा भवन्ति, एवं शीतपदेन बहुवचनान्तेनैव अन्ये चत्वारो भङ्गा भवन्ति, तथा शीतोष्णपदाभ्यामेते एव चत्वारो भङ्गा मिलित्वा षोडश एते भवन्ति, तथा लघुपदेन बहुवचनान्तेन एते एव चत्वारः तथा लघुशीत पदार्थ्यां बहुवचनान्ताभ्यामेते एव चत्वारो भङ्गाः, एवं लघूष्णपदाभ्यां चत्वारो भङ्गाः, एवं लघु शीतोष्ण प्रदेरपि चत्वारो भङ्गाः, तदेवमेतेऽपि षोडश भवन्ति एतदेव वचनान्त किया गया है बाकी का रूक्ष स्निग्धपद के एकवचनान्त और बहुवचनान्त सम्बन्धी कथन पूर्वोक्त जैसा ही है इस प्रकार के कथन में भी चार भङ्ग बने हैं। 'देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसे लहुए, देसा सीया, देसे उम्रिणे, देसे निद्धे, देसे लक्खे' इस प्रकार के कथन में 'शीतपद' को बहुवचनान्त किया गया है इस कथन में भी ४ भंग हुए प्रकट किये गये हैं यहां पर भी रूक्ष, स्निग्ध को एकवचन और बहुवचन में रखकर भङ्ग रचना हुई है 'देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसे लहुए, देसा सीया, देता उसिणा, देसे निद्धे, देसे लक्खे' इस प्रकार के कथन में भी चार भंग पूर्वोक्तरूप से रूक्ष स्निग्ध, पद को एकता और अनेकता से हुए हैं, यहां पर शीन और उष्णपर्दो में बहुवचनान्ता हुई है । इस प्रकार से ये सब भंग मिलकर १६ भंग हो जाते हैं। 'देसे कक्खडे, देसे मउए, देसे गरुए, देसा लहुया, देसे सीए, देसे उसिणे, देसे निद्धे, देसे लक्खे ४' इस प्रकार के कथन में એકવચનાન્ત અને બહુવચનાન્ત સંબંધીનું કથન પહેલા કહ્યા પ્રમાણે જ છે. या प्रभाोना उथन प्रारमा पशु यार लौंगो थाय छे. 'देसे कक्खडे देसे मउ देसे गरुए देखे लहुए देखा सीया देसे उक्षिणे देखे निद्धे देसे लुक्खे' એકદેશમાં કશ એકદેશમાં મૃદુ એકદેશમાં ગુરૂ એકદેશમાં લઘુ અનેક દેશામાં શીત એકદેશમાં ઉષ્ણ એકદેશમાં સ્નિગ્ધ અને એકદેશમાં રૂક્ષ સ્પશવાળા હાય છે. આ પ્રકારના કથતમાં શીત પદને બહુવચનથી કહ્યું છે. આ કથન પ્રકારના પશુ ચાર ૪ ભંગા પહેલાં બતાવ્યા છે. અહિયાં પણુ રૂક્ષ અને स्निग्धनेोऽवयन भने हुवयनमा योने लगोनी रचना थह छे. 'देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुर देखे लहुए देसा खीया देखा उसिणा देसे निद्धे देसे लुक्खे' या अारना स्थन प्रारंभी पशु ४२ लगे पूर्वेति ३ये ३क्ष સ્નિગ્ધ પદના એકપણા અને અનેકપણાથી થયા છે. આમાં શીત અને ઉષ્ણુ પદોમાં બહુવચનના પ્રયાગ થયા છે. આ રીતે આ તમામ ભ ંગા મળીને ૧૬ सोण थ लय छे. 'देसे कक्खडे देसे मउए देखे गए देसा लहुया देसे सीए देखे उसणे देसे निद्धे देखे लुक्खे४' या अहारना स्थल प्रहारमा प શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩

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