Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 963
________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ.५ सू०१० परमाणुप्रकारनिरूपणम् ९४९ इत्यादि, 'तं जहा' तद्यथा 'दबपरमाणू १, खेत्तपरमाणू २ कालपरमाणू ३, भावपरमाणू ४' द्रव्यपरमाणुः १, क्षेत्रपरमाणुः २, कालपरमाणुः ३, भावपरमाणुरिति ४, तथा च द्रव्यक्षेत्रकालभावभेदात् परमाणुश्चतुर्विध इति । एतेषु द्रव्यक्षेत्र हाल सारभिन्नेषु चतुःप्रकारकेषु परमाणुषु द्रव्यपरमाणुः कीदृशः फदिमकारश्चेति दर्शयितुभाह- दव्यपरमाणू' इत्यादि, 'दापरमाणू णं भंते ! काविहे पन्नत्ते' द्रव्यपरमाणुः खलु भदन्त ! कतिविधः प्रज्ञप्तः ? भगवानाह'गोयमा' इत्यादि, 'गोयमा' हे गौतम ! चउबिहे पन्नत्ते' चतुर्विधः प्रज्ञप्तः द्रव्यपरमाणुः तत्र द्रव्यरूपः परमाणुव्यपरमाणुः वर्णादिरूपधर्मविवक्षया एकः परमाणुरेव द्रव्यपरमाणुशब्देन कथ्यते, यतोऽत्र केवलं द्रव्यस्यैव विवक्षा विद्यते, एक आकाशमदेशः क्षेत्रपरमाणुरिति कथ्यते । समयः कालपरमाणुरिति कथ्यते। खण्ड न हो सके वह परमाणु कहा गया है, यह परमाणु 'दब्धपरमाणू १, खेत्तपरमाणू २, कालपरमाणू ३, भावपरमाणू' द्रव्यपरमाणु, क्षेत्रपरमाणु, कालपरमाणु और भावपरमाणु के भेद से चार प्रकार का कहा है-इनमें जो द्रव्यपरमाणु है उसके विषय में गौतम ने पुनः प्रभु से ऐसा पूछा है कि-'दव्यपरमाणू णं भंते ! कइविहे पन्नत्ते' हे भदन्त ! द्रव्यपरमाणु कितने प्रकार का कहा गया है ? उत्तर में प्रभु ने कहा है'गोयमा' चउबिहे पन्नत्ते' हे गौतम! द्रव्यपरमाणु चार प्रकार का कहा गया हैं ? द्रव्यरूप परमाणु का नाम द्रव्यपरमाणु है । इस द्रव्यपरमाणु में वर्णादिरूप धर्मों की विवक्षा नहीं हुई है, इसलिये एक परमाणु ही द्रव्यपरमाणु शब्द से गृहीत हुआ है । क्योंकि यहां केवल द्रव्य की ही विवक्षा हुई है । एक आकाशप्रदेश क्षेत्रपरमाणु कहा गया है। नश तने ५२मा ४३पामा भाव छ,-मा ५२माना 'दबपरमाणू १ खेत्त. परमाण२ कालपरमाणू ३ भावपरमाणू४' द्र०५५२मा क्षेत्र५२मा २ ४. પરમાણુ અને ભાવપરમાણુના ભેદથી ચાર પ્રકારે છે. આમાં જે દ્રવ્યપરમાણ છે તેના સંબંધમાં ગૌતમ સ્વામીએ પ્રભુને એવું પૂછ્યું છે કે'दव्वपरमाणू णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते' 8 लगन द्र०य परमाना है। anा है ? A. प्रश्नना उत्तम प्रभु छे ४-'गोयमा ! चउविहे पण्णत्ते' हे गौतम ६०५ ५२मा यार ना ४ामा माव्या छे. द्रव्य રૂપ પરમાણુનું નામ દ્રવ્ય પરમાણુ છે. આ દ્રવ્ય પરમાણુમાં વર્ણાદિ રૂપ ધર્મોની વિરક્ષા કરવામાં આવી નથી. જેથી એક પરમાણુ જ દ્રવ્ય પરમાણુ શબ્દથી ગ્રહણ કરાયેલ છે. કેમકે અહિયાં કેવળ દ્રવ્યની જ વિવક્ષા થઈ છે.૧ એક આકાશ પ્રદેશને ક્ષેત્ર પરમાણુ કહેવામાં આવે છે. સમય કાળ પરમાણુ શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩

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