Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० ७.५ सु०९ अनन्तप्रदेशिके सप्ताष्टस्पर्शगतभङ्गनि० ९०५
लहुए विसमं चउस िभंगा कायना' सर्वो लघुको देशः कर्कशो देशी मृदुको देशः शीतो देश उष्णो देशः स्निग्धो देशो रूक्षः, एवं लघुकेनापि समं चतुःषष्टि भङ्गा कर्त्तव्याः । 'सव्वे सीए देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसे निद्धे देसे लक्खे' सर्वः शी देशः कर्कशो देशी मृहको देशी गुरुको देशी लघुको देशः frost देशो रूक्षः, एवं शीतेनापि समं चउस भंग कायश्वा' एवं कर्कशादिवत् शीतेनापि समं चतु पष्टिर्मङ्गाः कर्त्तव्याः | 'सब्वे उणे देसे कक्खडे देसे उर देसे गरुर देसे बहुए देसे निद्धे देसे लक्खे' सर्व उष्णो
में रूक्ष स्पर्शत्राला हो सकता है १' ऐसा यह प्रथन भंग है 'सवे सीए, देसे कवडे, देसे भए, देसे गरुए, देसे लहुए, देसे निद्रे, देसे लक्खे' इस प्रकार के सर्वशीत प्रधानक कथन में भी ६४ भंग होते हैं, उन भंगों में से 'सर्वांश में वह शीत, एकदेश में कर्कश, एकदेश में मृदु, एकदेश में गुरु, एकदेश में लघु, एकदेश में स्निग्ध और एकदेश में रूक्ष हो सकता है' ऐसा यह प्रथम भंग है बाकी के भंग अपने आप बना लेना चाहिये 'सव्वे उसिणे, देसे कक्खडे, देखे मउए, देसे गरुए, देसे हुए, देसे निद्रे, देसे लक्खे' इस प्रकार के सर्व उष्ण प्रधानक कथन में भी ६४ भंग कर लेना चाहिये उन भंगों
એકદેશમાં રૂક્ષ પશવાળા હાય છે, આ રીતના લઘુ પદ પ્રધાનતાવાળા પણ ६४ थे।सह लगे। थाय छे तेना पडेसो लौंग या प्रमाणे छे 'सव्वे सीए देखे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए, देसे निद्धे देसे लुक्खे १ ते પેાતાના સર્વાશથી શીત એકદેશમાં કૅશ એકદેશમાં મૃદુ એકદેશમાં ગુરૂ એકદેશમાં લઘુ, એકદેશમાં સ્નિગ્ધ અને એકદેશમાં રૂક્ષ સ્પર્શ વાળે! હાય છે. આ પહેલેા ભંગ છે બાકીના પંદર ૧૫ ભંગા સ્વય સમજી લેવા, હવે उष्णु पहनी प्रधानतावाजा गोनो प्रहार अताववामां आवे छे. 'सव्वे उसि देसे कक्खडे देसे मए देसे गरुए देसे लहुए देखे निद्धे देखे लुक् खे १' ते પેાતાના સર્વાંશથી દુખ્યુ એકદેશમાં કર્કશ એકદેશમાં મૃદુ એકદેશમાં ગુરૂ એકદેશમાં લઘુ એકદેશમાં સ્નિગ્ધ અને એકદેશમાં રૂક્ષ પશ વાળે! હાય છે. આ ઉંષ્ણુ પદની પ્રધાનતાવાળા પહેલે ભંગ છે. માકીના ઉષ્ણુ પઢની પ્રધા નતાવાળા ૬૪ ચેાસઠ ભંગે! પૂર્વોક્ત પદ્ધતિ પ્રમાણે સમજી લેવા. આજ પ્રમાણે સ્નિગ્ધ સ્પર્શને પ્રધાન મનાવીને પણ ૬૪ ચાસઠ ભંગા થાય છે. તેના પ્રથમ लौंग या प्रमाणे छे-'सव्वे निद्धे देसे कक्खडे देसे मउए देसे गरुए देसे लहुए देसे सीए देखे उसणे १' ते पोताना सर्वांशथी स्निस्त्र देशमां ४
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શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩