Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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भगवतीसूत्रे
'सव्वे कक्खडे देसा गरुया देसा लहुया देसे सीए देसे उसने देसे निद्धे देसे लक्खे' एएवि सोलस भंगा माणियन्त्रा' सर्वः कर्कशो देशाः गुरुकाः देशाः लघुकाः है और शेष चार पदों में एकत्रचन प्रयुक्त हुआ है, द्वितीय चतुर्भङ्गी के प्रथम भंग में द्वितीयपद और पांचवें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है १, इसके द्वितीय भंग में factors, पांचवें पर और सानवें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है २, इसके तृतीय भंग में द्वितीय पद में, पांचवें पद में और छठे पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेष पदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है ३, इसके चतुर्थ भंग मेंद्वितीय पद में पांचवें पद में छठे पद में और सात वें पद में 'बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है, इसके द्वितीय भंग में द्वितीय पद में चतुर्थपद में और सातवें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है, इसके तृतीय भंग में द्वितीयपद में, चतुर्थपद में और छठे पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है ३, इसके चतुर्थ भंग में द्वितीय पद में, चतुर्थपद में, छठे पद में और सातवें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है४, चतुर्थ चतुर्भगी के प्रथम भंग में द्वितीयपद में चतुर्थ पद में और पांचवें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है, इसके द्वितीय भंग में द्वितीय पद में, चतुर्थ पद में, पंचम पद में, और सातवें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेष - पदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है, इसके तृतीय भंग में द्वितीय पद में चतुर्थ पद में, पांचवें पद में और छठे पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषपदों में एकवचन प्रयुक्त हुआ है, इसके चतुर्थ भंग में द्वितीय पद में, चतुर्थ पद में, पांचवें पद में, छठे पद में और सातवें पद में बहुवचन प्रयुक्त हुआ है और शेषादों में एकवचन, 'सव्वे कक्खडे, देसा गरुवा, देसा लहुया, देसे सीए, देसे उसिणे, देसे निद्धे, देखे लक्खे' सर्वांश में वह कर्कश, अनेक देशों में गुरु, अनेक देशों में लघु,
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सोज लौंगो मनावत्रामां भाव्या छे. 'सव्वे कक्खडे देखा गरुया देसा लहुया देसे सीए देसे उसिणे ऐसे निद्धे देसे लक्खे' सर्वांशी ते अशाने देशोभां ગુરૂ અનેક દેશેામાં લઘુ એકદેશમાં શીત એકદેશમાં ઉષ્ણ એકદેશમાં
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩