Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०१९ उ०३ सू०१ लेश्यावान् पृथ्वीकायिकादिजीवनि० २९९ पृथिवीकायिकजीवानां कियन्त्यो लेश्याः भवन्तोति प्रश्नः, भगवानाह-'गोयमा' इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'चत्तारि लेस्साओ पन्नत्ताओ' चतस्रो लेश्याः प्रज्ञप्ताः 'तं जहा' तद्यथा 'कण्हलेस्सा य' कृष्णलेश्या 'नीललेस्सा' नीललेश्या 'काउलेस्सा' कापोतलेश्या 'तेउलेस्सा' तेजोलेश्या २ । तृतीयं दृष्टिद्वारमाह'ते णं भंते ! 'ते पृथिवीकायिका खलु भदन्त ! जीवा किं सम्मट्ठिी मिच्छादिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी' ते जीवाः किं सभ्यादृष्टयो मिथ्यादृष्टयः सम्यग्मिथ्यादृष्टयो वा ? कीदृशी दृष्टिः पृथिवोकायिकजीवानां भवतीति प्रश्ना, भगवानाह-'गोयमा! इत्यादि । 'गोयमा' हे गौतम ! 'नो सम्मदिट्ठी' नो सम्यग्दृष्टयः पृथिवीकाहे भदन्त ! उन पृथिवीकायिक जीवों के कितनी लेश्याएं होती हैं ऐसी यह द्वितीय प्रश्न हैं उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा ! चत्तारि लेस्साओ पन्नत्ताओ' हे गौतम ! उन पृथिवीकायिक जीवों के चार लेश्याएं होती हैं, जिनके नाम इस प्रकार से हैं--'कण्ह लेस्सा य०' कृष्णलेश्या, नीललेश्या कापोतलेश्या और तेजोलेश्या ॥२॥ ___ अब तृतीय दृष्टिद्वार का कथन किया जाता है इसमें गौतम ने प्रभु से ऐसा पूछा है--'ते णं भंते ! जीवा किं सम्मदिट्टी मिच्छाहिट्ठी सम्मामिच्छादिट्ठी' हे भदन्त ! पृथिवीकायिक जीव क्या सम्यग्दृष्टि होते हैं ? या मिथ्यादृष्टि होते हैं ? या सम्यगमिथ्यादृष्टि होते हैं ? अर्थात् इन जीवों की कैसी दृष्टि होती है ? उत्तर में प्रभु कहते हैं-'गोयमा' हे गौतम ! 'नो सम्मदिट्ठी' पृथिवीकायिक जीव सम्यग् दृष्टि नहीं होते हैं और न
હવે બીજા લેણ્યાદ્વારનું કથન કરવામાં આવે છે,
भाभा गौतम स्वाभाये प्रभुने मे ५७\ छ , सि णं भते ! जीवाणं कइलेस्साओ पन्नताओ' भगवन त पृथकीय वान क्षी सेश्या। हाय छे ? 24 प्रश्न उत्तरमा प्रभुणे -गोयमा! चत्तारि. लेस्साओ पण्णत्ताओ' 3 गौतम! ते पृथ्वी4x वाने या वेश्यामे।
वामां मावी छ. तना नाम मा प्रमाणे छ-'कण्हलेस्सा य०' वेश्या , નીલેશ્યા, કાપતલેશ્યા, અને તેજલેશ્યા કેરા
હવે ત્રીજા દષ્ટિદ્વારનું કથન કરવામાં આવે છે. તેમાં ગૌતમ સ્વામી प्रभुने से पूछे 3-'ते णं भते ! जीवा कि सम्मदिट्ठी मिच्छा दिदी सम्मा मिच्छा दिदी' साप ते पृथ्वियि शुसम्यवाणा हाय छ? અથવા મિથ્યા દષ્ટિવાળા હોય છે? અથવા તે સમગ્ર મિથ્યાદષ્ટિવાળા હોય છે ? અર્થાત આ જીવોની કેવી દષ્ટિ હોય છે? આ પ્રશ્નના ઉત્તરમાં પ્રભુ
छ -'गोयमा !' ७ गोतम ! नो सम्मदिट्ठी' पृथ्वी यि ७१ सभ्य
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩