Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
६४४
भगयतीसरे काश्च नीलकाश्च लोहितकश्च प्रथमद्वितीययोरनेकत्वं चरमस्य चैकत्वमादाय सप्तमो भङ्गो भवतीति । इत्थं त्रिवर्णमधिकृत्य पञ्चपदेशिके सप्तमङ्गा भवन्नीति ७। 'सिय कालए नीलए हालिद्दए य' स्यात् कालो नीलो हारिद्रय, 'एत्थ वि सत्तभना' अत्रापि सप्त भङ्गा भवन्ति तथाहि-'सिय कालए नीलए हालिहए य१, सिय कालए नीलए हालिद्दगा य२, सिय कालए नीलगाय हालिदए य ३, सिय कालए नीलगा हालिदगा य ४, सिय कालगा य नीलए य हालिद्दए य ५, सिय कालगाय नीलए यहालिदगा य ६, सियकालगा य नीलगा य हालिद्दए य ७' स्यात् कालव यए य७ उसके अनेक देश काले भी हो सकते हैं और अनेकदेश नीले भी हो सकते हैं तथा एकदेश उसका लालवर्ण का भी हो सकता है यहां प्रथम और द्वितीयपद में अनेकता एवं तृतीय पदमें एकता प्रकट कर यह भंग बनाया गया है इस प्रकार से पंचप्रदेशिक स्कन्ध में ये ७ भंग त्रिवर्ण को लेकर होते हैं इसी प्रकार से 'सिय कालए नीलए हालिहए ये यहां पर भी ७ भंग होते हैं जो इस प्रकार से हैं 'सिय कालए नीलए हालिए य' यह प्रथम भंग है 'सिय कालए नीलए हालिहगा य २' यह वित्तीय भंग है 'सिय कालए नीलगा य हालिहए य ३' यह तृतीय भंग है 'सिय कालए नीलगा हालिहगा य' यह चतुर्थ भंग है 'सिय कालगा य नीलए य हालिद्दए य ५' यह पांचवां भंग है 'सिय कालगाय नीलए य हालिद्दगा य' यह छठा भंग है 'सिय कालगाय नीलगाय हालिहए य' यह सातवां भंग है इन सात भंगों के होने की
તેના અનેક દેશો કાળાવણુંવાળા હોય છે. તથા અનેક દેશે નીલવર્ણવાળા હોય છે. તથા એકદેશ લાલવર્ણવા પણ હોઈ શકે છે. આ ભંગમાં પહેલા અને બીજા પદમાં બહુવચનથી અનેકપણુ અને ત્રીજા પદમાં એકવચન કહીને એકપણ બતાવીને આ ભંગ બનાવેલ છે ૭ આ રીતે પાંચ પ્રદેશવાળા સ્કંધમાં ७ सात
न याथी थाय छे. मे शत 'सिय कालए नीलए हालिहए या भने पीना योगयी ५५ ७ सात मन छ. २भाशत छ-मिए कालए नीलए हालिद्दए य' मा ५७ छे. 'सिय कालए नीलए हालिहगा यर' मा भान छे. 'सिय कालए नीलगा य हालिहए य३'
श्रीन ल छे. 'सिय कालए नीलगा य हालिहंगा यम था। छे. 'सिय कालगा य नीलए य हालिद्दए य५' मा पांथमे छ. 'सिय कालगा य नीलए य हालिदगा य६' माछो छे. 'सिय कालगा य नीलगा य हालिहए य'
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૩