Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 13 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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प्रमेयचन्द्रिका टीका श०२० उ०५ सू० ३ पञ्चप्रदेशिकस्कन्धनिरूपणम् १५७ शुक्लेष्वपि सप्त भङ्गा भवन्ति, तथाहि-'सिय नीलए हालिद्दए सुकिलए य१, सिय नीलए य हालिद्दए य मुक्किलगा य२, सिय नीलए य हालिहगा य सुकिल्लए य३, सिय नीलए य हालिहगा य मुक्किलगा य४, सिय नीलगा य हालिद्दए य सुकिल्लए य५, हुआ है सातवें भंग में आदि पद में एवं मध्यम पदमें बहुवचन का प्रयोग हुआ है और अन्तिम पदमें एकवचन का प्रयोग हुआ है । 'नीलहा. लिहसुक्किल्लेसु' इसी प्रकार से नील पीत और शुक्ल इन तीन पदों के संयोग में भी ७ भंग होते हैं जो इस प्रकार से हैं-'सिय नीलए हालिहुए मुश्किल्लए य १, सिय नीलए य, हालिद्दए य सुक्किल्लगा य २, सिय नीलए य, हालिद्दगा य सुकिल्लए य ३, सिय नीलए यहालिहगा य सुक्किलगा य ४ सिय नीलगा य हालिद्दर य सुक्किलए य ५, सिय नीलगा य हालिद्दए य सुकिल्लगा य ६, सिय नीलगा य हालिइगा य सुक्किल्लए य ७ इन भङ्गों के अनुसार वह एक प्रदेश में नील एक प्रदेश में पीत और एक प्रदेश में शुक्ल भी हो सकता है १ अथवा-एक प्रदेश में नील, एक प्रदेश में पीत और अनेक प्रदेशों में वह शुक्ल भी हो सकता है २ अथवा-वह एक प्रदेश में नील अनेक प्रदेशों में पीत और एक प्रदेश में शुक्ल भी हो सकता है ३ अथवाબહુવચન પ્રોગ થયો છે. અને ત્રીજા પદમાં એક વચન કહ્યું છે. 'नीलहालिहसुकिल्लेसु सत्तभंगा' नीस पाजाव भने सई व योगथा ७ सात सग थाय छे. २ मा प्रमाणे छ. 'सिय नीलए हालिहए सुक्किल्लए य ४ पार ते पाताना प्रदेशमा नीसाणे डाय छ । પ્રદેશમાં પીળા વર્ણવાળ હોય છે. તથા એકપ્રદેશમાં સફેદ વર્ણવાળ પણ डा श . मा ५3 1 छ. १ 'सिय नीलए य हालिद्दर य सुकिल्लगा ૨ ૨' અથવા તે પિતાના એક પ્રદેશમાં નીલવર્ણવાળો હોય છે. એક પ્રદેશમાં પીળા વર્ણવાળો હોય છે. અને અનેક પ્રદેશોમાં સફેદ વર્ણવાળો ५९ छ छे. भा भी छे. २ तथा 'सिय नीलए य हालि हगा य सुकिल्लए य ३' मयत शमा नीaajाणो डाय छे. अने। પ્રદેશોમાં પીળા વર્ણવાળો હોય છે. તથા એક પ્રદેશમાં સફેદ વર્ણવાળી पाश छ. मेरी मा श्रीRAL Bही छे. 3 'सिय नीलए य हालिद्द गा य सुक्लिल्लगा य ४' २५थपाते चोताना 23 प्रदेशमा नlayatil राय છે. અનેક પ્રદેશમાં પીળા વર્ણવાળો હોય છે તથા અનેક પ્રદેશોમાં સફેદ वाणी डाय छे. भा याथी म छे. ४ 'सिय नीलगा य हालिहए य मुक्कि
શ્રી ભગવતી સૂત્ર: ૧૩